भूमंडलीकरण

भूमंडलीकरण शब्द हिंदी हिंदी के ग्लोबलाइजेशन का हिंदी अनुवाद है| सामान्य रूप से वैश्वीकरण या भूमंडलीकरण शब्द का अर्थ विश्व के व्याप्त देशों की अर्थव्यवस्था के बंधन रहस्य समीकरण की प्रक्रिया से है ।
नवल किशोर :- भूमंडलीकरण का अर्थ है मुक्त व्यापार  से है जिसमें से विश्व के विभिन्न देशों का एक कुटुम के रूप में अपने अर्थव्यवस्था संस्कृति व सभ्यता  को सांझा करते हैं।


भूमंडलीकरण विश्व के विभिन्न देशों के बीच में आर्थिक साझेदारी की प्रक्रिया है इस साझेदारी को और मजबूत बाजारवाद और उपभोक्तावादी संस्कृति ने किया है जो भूमंडलीकरण से ही निर्मित संस्कृति है जिसकी वजह से आज विश्व एक बाजार बन गया है और उसे सकारात्मक व नकारात्मक प्रभाव देशों की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है और इस प्रभाव का प्रभाव अन्य देशों के के विकास पर पड़ता है ऐसा तो हर कोई इससे प्रभावित होता है क्योंकि सभी देश बाजारवाद की वजह से आर्थिक रुप से एक दूसरे पर निर्भर है ठीक है एक माला के समान जिसमें विभिन्न देश भूमंडलीकरण के बाजार के धागे से बंधे हैं इस बंधन को और मजबूत करने का श्रेय विज्ञान प्रौद्योगिकी हो जाता है जिसने विश्व के देशों की दूरियों को समाप्त कर उन्हें नजदीक ला दिया है जिसकी वजह से व्यापार सहज हो गया और विकास में और अधिक तीव्रता आ गई है


यह भूमंडलीकरण आज की उपज नहीं है भूमंडलीकरण की अवधारणा कोई नई नहीं है और ना ही अकस्मात धमकी ह नवल जी नवल जी कहते हैं इसकी” शुरुआत सभ्यता के आरंभिक चरण से मानी जा सकती है।” जिसके बीज सिल्क रूट के समय से मिलते हैं जो भारत को चीन पश्चिम एशिया आधी से जोड़ता है जिसमें लोगों और वस्तुओं का व्यापार होता था आगे चलकर यह व्यापार कार्य समुद्री मार्गों द्वारा हो गया जिसकी वजह से स्वेज नहर का निर्माण हुआ और इसके साथ ही व्यापार में प्रौद्योगिकी का व्यापार प्रारंभ हो गया आज के समय में जो भूमंडलीकरण है वह आधुनिक है जिसका बीज 15 से 16 वी शताब्दी के दौर में अंकुरित हो रहे थे


आधुनिक भूमंडलीकरण के संयुक्त राष्ट्र संघ विश्व बैंक निजी कंपनियां एक कारक है जिसमें निजी कंपनी और उपभोक्तावादी संस्कृति को बढ़ावा मिला भारत के संदर्भ में भूमंडलीकरण 1991 में देखने को मिलता है स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था का अर्थव्यवस्था को अपनाय भारतीय अर्थव्यवस्था अपने आय से अधिक व्यय होने के कारण 1991 में ऐसी स्थिति में पहुंच गए जिससे वह बाहर के अन्य देशों से भिन्न लेने की विश्वसनीयता खो बैठे हैं वही दूसरी तरफ अन्य समस्याएं बढ़ती कीमतें पर्याप्त पूंजी कमी भारतीय अर्थव्यवस्था अपने आए से अधिक दे होने के कारण 1991 में ऐसी स्थिति में पांच डेज इसे वे बाहर की अन्य देशो से जिन लेने विश्व श्वेता को बैठूं विदुषी तन्ने समस्याएं भर्ती कीमती प्यार पूंजी कमीनी प्रयोग का पिछड़ा अपनी समस्या को बढ़ावा दे रहा था जिसकी वजह से अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक के सुझाव के फलस्वरुप भारत को अपनी अर्थव्यवस्था को खोलना पड़ा LPG की नीति को अपनाना पड़ा निजी क्षेत्र को कई पति बंधुओं से मुक्त किया गया विदेशी कंपनियों को भारत में व्यापार के लिए आमंत्रित किया गया जिसकी वजह से भारत में विगत कई दशक से विदेशी कंपनी अपना निवेश भारतीय बाजार में कर रही है इसी की वजह से भारत में बाजारवादी उपभोक्तावादी संस्कृति का जन्म हुआ साथ ही प्रतिभा पलायन की स्थिति बनी रहे औद्योगिक एकीकरण औद्योगिक एकीकरण का प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था के साथ सामाजिक राजनीतिक सांस्कृतिक पक्षियों पर भी पड़ा जिससे साहित्य भी अछूता नहीं रहा जैसा कि कहा ही गया है साहित्य समाज का दर्पण होता है इसलिए साहित्य में भी भूमंडलीकरण का प्रभाव झलकता है कृष्णदत्त पालीवाल कहते हैं वह मंडी करण बाजार की नीतियों का ऐसा व्यापक प्रभाव इधर के हिंदी साहित्य पर पड़ा कि उसमें राजनीतिक संस्कृति  क्षरण के घाव भी पाठक को रिश्ते दिखाई देते है समग्र हिंदी साहित्य पर भूमंडलीकरण का जो प्रभाव पड़ा है उससे उपन्यास भी  अछूता नहीं रहा है उपन्यास विधा में तो अपने समय का यथार्थ प्रत्यक्ष और स्पष्ट नजर आता है इसी भूमंडलीकरण संस्कृति के सकारात्मक नकारात्मक प्रभावों को ममता कालिया के दौड़ अलका सरावगी के उपन्यास एक ब्रेक के बाद मैं देखा जा सकता हू
भूमंडलीकरण के प्रभाव से या भारत में बहुराष्ट्रीय कंपनियों का आगमन हुआ वही बाजारवाद उपभोक्तावादी संस्कृति का आगमन भी हुआ तथा इनके सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव विशेष तौर पर हमारे मध्यवर्गीय समाज पर देखने को मिलते हैं ं जहां बहुराष्ट्रीय कंपनियों मैं मध्य वर्गीय परिवार के नवयुवक वैसा जगत के प्रभाव बढ़ते दवा प्रतिस्पर्धा संघर्ष को तो जीते हैं वहीं दूसरी और वर्तमान समय के आधुनिक भारतीय समाज के दिनचर्या में बाजार की चकाचौंध का प्रभाव नजर आता है किस प्रकार एक छोटा सा बालक बाजार के प्रभाव से ग्रस्त होकर दो खिलौनों के द्वंद स्थिति में पड़ जाता ह कि वह  नाचने वाला बंदर ले या हवा में चलाने वाली बंदूक  किसी प्रकार है निश्चय कर कर  एक खिलौने का चयन करता है  और आगे जाकर  वह पुनः बाजार के प्रभाव में आकर  हवा में चलने वाली बंदूक लेने बंदूक लेने की जिद करता है  और और उसके अभिभावक जब से पुनः दुकान पर ले जाते हैं तो वह पुनः बाजारवाद के जाल में फंसकर बंदूक को छोड़कर साइकिल लेने की जिद करने लगता है  यह बाजार का ही प्रभाव है  जो इस उपन्यास  इन उपन्यासों में नजर आता है । बाजार किस प्रकार विज्ञापन के माध्यम से हमारी जरूरतों को पैदा करता है तथा आवश्यकता न होने पर भी वस्तु खरीदने को विवश कर देता है विज्ञापनों की वजह से स्थिति आज के समय में यह हो गई है कि पहले बाजार घर के बाहर हुआ करते थे और आज मैं घर के अंदर घुस आए हैं
वही किस प्रकार मध्यवर्गीय  नवयुवक  अपने व्यवसाय जगत के  प्रतिस्पर्धा  और दबाव के बीच अपने करियर और तरक्की के लिए हर मुमकिन कार्य करने का प्रयास करता है इस प्रयास की स्थिति में मैं कई बार मूल्यहीन कार्य भी करने को तैयार होता है कॉर्पोरेट जगत में किस प्रकार नैतिक मूल्यों का स्वाहा होता ह होता है यह दौर उपन्यास के अभिषेक के कथन से  जाना जा सकता है  जिसमें वह कहता है  ओह शिट  सीधा-सादा एक प्रोडक्ट बेचना है  इसमें तुम नैतिकता और सच्चाई जैसी भारी-भरकम सवाल मेरे सिर पर दे मार रही हो  …… यह सच्चाई नैतिकता शब्द  दर्जा तक में मॉडल साइंस में पढ़कर भूल चुका हूं
वहीं एक ब्रेक के बाद के केवी कॉर्पोरेट कंपनियों के मार्केटिंग के आदमियो की स्थिति  को व्यक्त करते हुए कहते है हम मार्केटिंग के आदमियों का एक पाव इधर तो दूसरा पाव नारद मुनि की तरह कहीं और रहता है नारद मुनि की …. थोड़ी सी बात इधर की उधर और उधर की इधर तो हो ही जाती है
इस बार भूमंडलीकरण  की व्यवसाय जगत में  किस प्रकार एक जगह एक नौकरी लेकर अपना कार्य और अपने से जीवन को स्थापित करना कितना मुश्किल है इसका परिचय  दौड़  और ब्रेक के बाद में स्पष्ट रुप से नजर आता है जहां इन उपन्यासों में व्यवसाय जगत का यथार्थ निकल कर आ रहा है वहीं भूमंडलीकरण का प्रभाव हमारे जीवन को कैसे प्रभावित करता है  उस दृष्टि से भी उपन्यास महत्वपूर्ण ह व्यवसाय जगत के प्रभाव से  मानव जीवन  संवेदनहीन होता जा रहा है  आज मनुष्य आजीविका के चक्कर में संवेदनशून्य होता जा रहा है  पहले मनुष्य जीने के लिए आजीविका ढूंढता था परंतु आज के समय में आजीविका के लिए मनुष्य जीना ही भूलता जा रहा है व्यवसाय जगत में अपने कैरियर के लिए मशीन बनता जा रहा है उसके पास इतना समय नहीं है कि वह अपने परिवारजन अपने मित्र स्वयं के लिए समय निकाल सके वह केवल अपने कैरियर के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान दूसरे से तीसरे से भटकता रहता है जीवन में कहीं ठहराव नहीं होता है कई बार यह भटकाव प्रतिभा पलायन की भी स्थिति उत्पन्न कर देती है
भूमंडलीय संस्कृति का प्रभाव  हमारी शिक्षा जगत पर भी पड़ने लगा है जिसकी वजह से आज शिक्षा का भी बाजारीकरण होने लगा है भूमंडलीकरण की दृष्टि से ममता कालिया का दौड़ और अलका सरावगी का एक ब्रेक के बाद उपन्यास भारतीय समाज पर पड़ने वाले विभिन्न सामाजिक सांस्कृतिक आर्थिक प्रभाव की दृष्टि से महत्वपूर्ण है जो बाजार की असलियत और कॉर्पोरेट कंपनियों का यथार्थ प्रस्तुत करती  है।


शोध विषय का चयन
भूमंडलीकरण का भारतीय समाज संस्कृति अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव को दौड़ और एक ब्रेक के बाद उपन्यासों के समानता असमानताओं के द्वारा समझाना।
दौड़ने के बाद उपन्यास के समानता और असमानताओं के द्वारा बाजारवाद के यथार्थ को समझाना
भूमंडलीकरण का भविष्य में भारत पर पड़ने वाले प्रभाव को दौड़ और एक ब्रेक के बाद के समानता असमानताओं के द्वारा समझाना।
वेबसाइट जगत में मनुष्य बनाम मशीन की स्थिति को समझना।


संभावित अध्याय
भूमंडलीकरण की अवधारणा
भारतीय परिपेक्ष और भूमंडलीकरण
दौड़ और एक ब्रेक के बाद उपन्यास का तुलनात्मक अध्ययन
उपसंहार
शोध प्रविधि दौड़ और एक ब्रेक के बाद उपन्यास भूमंडलीकरण  संस्कृति के आधार पर तुलनात्मक अध्ययन करूंगी और कोशिश करूंगा कि विषय से संबंधित अपने शोध के सभी पहलुओं का संभावित अनुसरण करो जैसे आर्थिक सामाजिक सांस्कृतिक और राजनीतिक पक्ष का अध्ययन।

संदर्भ ग्रंथ सूची

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